मशहूर उर्दू शायर फहमी बदायूंनी का 72 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। उनका जन्म जनवरी 1952 में उत्तर प्रदेश के बदायूं ज़िले के बिसौली कस्बे में हुआ था। फहमी बदायूंनी न केवल शायरी में माहिर थे, बल्कि विज्ञान और गणित में भी उनकी गहरी पकड़ थी। उनकी शायरी से हर पीढ़ी के लोग भावनात्मक रूप से जुड़ाव महसूस करते थे। उनके निधन से साहित्य जगत में गहरा शोक व्याप्त है, और सोशल मीडिया पर भी लोग उन्हें याद कर रहे हैं।
शायर इमरान प्रतापगढ़ी ने फहमी बदायूंनी को श्रद्धांजलि देते हुए उनके लिए दुआ मांगी। उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा, “अलविदा फ़हमी बदायूंनी साहब, आपका जाना उर्दू साहित्य के लिए एक बड़ा नुकसान है। सोचा था कि किसी महफ़िल में आपको सुनने का अवसर मिलेगा, लेकिन यह दुःखद खबर आ गई। अल्लाह आपको जन्नत नसीब करे।”
वहीं, युवा दिलों के शायर जुबेर अली ताबिश ने उनके निधन पर इंस्टाग्राम पर लिखा, “फहमी साहब के इस तरह चले जाने से अदबी दुनिया को भारी नुकसान हुआ है। मैं इस दुःखद घटना को अपने दिल में बिठा नहीं पा रहा हूं। तकरीबन 13 साल पुराना रिश्ता था, जिसमें कई बार शायरी, घर के मसलों और दोस्ती की बातें हुईं। उनकी शायरी जितनी अनोखी थी, उनका व्यक्तित्व उतना ही साधारण।”
फहमी बदायूंनी की शायरी हर उम्र के लोगों को पसंद आती रही है। उनके कुछ प्रसिद्ध शेर इस प्रकार हैं:
पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा,
कितना आसान था इलाज मिरा।
मैं ने उस की तरफ़ से ख़त लिक्खा,
और अपने पते पे भेज दिया।
वफ़ा करने की नौबत आ गई है,
परेशाँ है वो झूठा इश्क़ कर के।
ख़ुशी से काँप रही थीं ये उँगलियाँ इतनी,
डिलीट हो गया इक शख़्स सेव करने में।
काश वो रास्ते में मिल जाए,
मुझ को मुँह फेर कर गुज़रना है।
तेरे जैसा कोई मिला ही नहीं,
कैसे मिलता कहीं पे था ही नहीं।
कोई मिलता नहीं ख़ुदा की तरह,
फिरता रहता हूँ मैं दुआ की तरह।
ग़म तआक़ुब में हैं सज़ा की तरह,
तू छुपा ले मुझे ख़ता की तरह।
हो रहीं हैं शहादतें मुझ में,
और मैं चुप हूँ कर्बला की तरह।
तुम्हें बस ये बताना चाहता हूँ,
मैं तुम से क्या छुपाना चाहता हूँ।
कभी मुझ से भी कोई झूठ बोलो,
मैं हाँ में हाँ मिलाना चाहता हूँ।
फहमी बदायूंनी की शायरी की अनूठी शैली और उनका सरल व्यक्तित्व उन्हें हमेशा साहित्य जगत में अमर रखेगा।
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