
भोपाल
भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े एक अहम मामले की अब सुनवाई मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में होने जा रही है। यूनियन कार्बाइड गैस लीक से प्रभावित हजारों लोगों को गलत तरीके से मामूली चोट या अस्थायी विकलांगता बता कर मुआवजा कम दिए जाने का आरोप है। पीड़ित संगठनों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में की गई। अपील के बाद अब यह मामला जबलपुर हाईकोर्ट पहुंचा है। यहां इसकी सुनवाई 11 अगस्त को होगी।
गंभीर पीड़ितों को मामूली घायल बताकर मुआवजा घटा
भोपाल गैस पीड़ित महिला-पुरुष संघर्ष मोर्चा समेत कई संगठनों ने आरोप लगाया है कि हजारों पीड़ितों को, जिनकी सेहत पर गैस रिसाव का गहरा असर हुआ था, उन्हें जानबूझकर अस्थायी विकलांगता या मामूली चोट की श्रेणी में डाल दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि उन्हें नाममात्र का मुआवजा मिला। इससे न तो उनका इलाज ठीक से हो पाया और न ही वे अपनी पीड़ा के लिए न्याय पा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा – हाईकोर्ट तय करे मामला
पीड़ितों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। याचिका में मांग की गई थी कि केंद्र सरकार यह जांच कराए कि किन पीड़ितों को गलत तरीके से वर्गीकृत किया गया है। उन्हें उचित मुआवजे की श्रेणी में रखा जाए ताकि उनका इलाज और पुनर्वास सुनिश्चित किया जा सके। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा था कि हाईकोर्ट इस मुद्दे का फैसला तथ्यों के आधार पर करे। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि पीड़ितों को अपनी बात रखने का उचित मंच मिलना चाहिए।
भोपाल गैस त्रासदी पीड़ित मुआवजा मामले पर एक नजर…
भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े मामले की सुनवाई अब 11 अगस्त को जबलपुर हाईकोर्ट में होगी, जिसमें पीड़ितों को कम मुआवजा दिए जाने के आरोपों की जांच की जाएगी। गैस लीक से गंभीर रूप से प्रभावित लोगों को जानबूझकर मामूली चोट या अस्थायी विकलांगता की श्रेणी में डालकर उन्हें कम मुआवजा दिया गया, जिससे उनका इलाज और पुनर्वास प्रभावित हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच हाईकोर्ट को सौंपते हुए कहा कि पीड़ितों को न्याय पाने का उचित मंच मिलना चाहिए और उचित मुआवजा मिलना चाहिए। पीड़ित संगठनों का आरोप है कि कैंसर, किडनी फेलियर जैसे गंभीर मामलों वाले लोगों को भी मामूली चोट का शिकार बताया गया, जबकि उन्हें स्थायी विकलांगता की श्रेणी में होना चाहिए था। पीड़ित संगठनों ने सरकार की चूक और सिस्टम की बेरुखी को उजागर किया, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में मुआवजा अपर्याप्त होने पर जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर डाली थी।
आज 6 अगस्त को यह मामला जबलपुर हाईकोर्ट की मुख्य पीठ में लिस्ट हुआ था, लेकिन चीफ जस्टिस की बेंच अनुपलब्ध होने के कारण जस्टिस अतुल श्रीधर की डिविजनल बेंच ने इसे अगली सुनवाई के लिए 11 अगस्त की तारीख दे दी है। अब इसी दिन यह तय होगा कि आगे केस की सुनवाई कैसे चलेगी।
कैंसर और किडनी फेलियर के मरीज भी गिनाए गए मामूली पीड़ितों में!
पीड़ित संगठनों ने अदालत को बताया कि उनके पास ऐसे दर्जनों मामलों के प्रमाण हैं। इनमें मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस के कारण कैंसर, किडनी फेलियर और अन्य गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों को भी मामूली या अस्थायी चोट का पीड़ित बताया गया है। उनका कहना है कि इन्हें स्थायी विकलांगता की श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए था।
सरकार की चूक, सिस्टम की बेरुखी
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि जुलाई 2023 में जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की सुधारात्मक याचिकाएं खारिज की थीं, तो यह स्पष्ट कर दिया गया था कि यदि मुआवजा अपर्याप्त है, तो इसकी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की ही होगी। पीड़ित अब इस नई कानूनी लड़ाई में उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उन्हें देर से ही सही, लेकिन न्याय जरूर मिलेगा।