
भोपाल
मध्य प्रदेश के अधिकांश जिलों में बुधवार और गुरुवार को गरज-चमक के साथ हल्की से मध्यम बारिश हो सकती है। इसके बाद शुक्रवार से एक बार फिर कहीं-कहीं भारी बारिश के आसार जताए गए हैं। मंगलवार सुबह साढ़े आठ बजे से शाम साढ़े पांच बजे तक रतलाम में 29, उमरिया में नौ, दमोह में छह, खजुराहो में चार, नौगांव एवं उज्जैन में एक, इंदौर में 0.5 मिलीमीटर बारिश हुई। मध्यप्रदेश में बुधवार को हल्की बारिश का दौर रहेगा। कहीं भी तेज बारिश का अलर्ट नहीं है। 28 अगस्त से नया सिस्टम एक्टिव होगा। इस वजह से दक्षिणी हिस्से में एक बार फिर तेज बारिश शुरू होगी।
मौसम विज्ञान केंद्र के विज्ञानी अभिजीत चक्रवर्ती ने बताया कि उत्तर-पश्चिमी बंगाल की खाड़ी में कम दबाव का क्षेत्र बना है। इसके पश्चिम-उत्तर-पश्चिम दिशा में आगे बढ़ते हुए दो दिन में और शक्तिशाली होने की संभावना है। दक्षिणी हरियाणा और उससे लगे उत्तर-पूर्वी राजस्थान पर हवा के ऊपरी भाग में चक्रवात बना हुआ है। इससे पहले मंगलवार को रतलाम, मंदसौर समेत कई जिलों में तेज बारिश हुई। रतलाम में चौराहों पर पानी भर गया तो मंदसौर में शिवना नदी उफान पर आ गई। जबलपुर के बरगी डैम के 9 और नर्मदापुरम के तवा बांध के 3 गेट खुले रहे। रतलाम में करीब सवा इंच बारिश हुई। वहीं, नर्मदापुरम, उज्जैन, दमोह, खजुराहो, नौगांव, उमरिया में भी हल्की बारिश हुई।
हवाओं के साथ आ रही नमी
मानसून द्रोणिका श्रीगंगानगर, सिरसा, आगरा, बांदा, सीधी, संबलपुर से बंगाल की खाड़ी तक बनी हुई है। एक पश्चिमी विक्षोभ पाकिस्तान और उससे लगे जम्मू पर द्रोणिका के रूप में सक्रिय है। अलग-अलग स्थानों पर बनी इन मौसम प्रणालियों के असर से हवाओं के साथ नमी आ रही है। इस वजह से अलग-अलग स्थानों पर बारिश हो रही है।
नर्मदापुरम में तवा डैम के तीन गेट दो-दो फीट की ऊंचाई तक खोलकर 10 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा गया। मंदसौर में शिवना नदी, नाहरगढ़ बिल्लोद पुलिया के ऊपर से बही। भानपुरा में बड़ा महादेव स्थित झरना बहने लगा है। बता दें कि बारिश के मामले में गुना सबसे आगे है। यहां 53.3 इंच पानी गिर चुका है। वहीं, मंडला में 52.8 इंच, अशोकनगर में 50.5 इंच, श्योपुर में 49.9 इंच और शिवपुरी में 49.7 इंच बारिश हुई है।
ग्वालियर, चंबल-सागर सबसे बेहतर एमपी में जब से मानसून एंटर हुआ, तब से पूर्वी हिस्से यानी, जबलपुर, रीवा, सागर और शहडोल संभाग में तेज बारिश हुई है। यहां बारिश के स्ट्रॉन्ग सिस्टम एक्टिव रहे। छतरपुर, मंडला, टीकमगढ़, उमरिया समेत कई जिलों में बाढ़ आ गई। इसके अलावा ग्वालियर-चंबल में भी मानसून जमकर बरसा है। यहां के 8 जिलों में से 7 में कोटे से ज्यादा पानी गिर चुका है। इनमें ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, अशोकनगर, भिंड, मुरैना और श्योपुर शामिल हैं। दतिया में भी 96 प्रतिशत से अधिक बारिश हो चुकी है।
भोपाल में 2006 में अगस्त में 35 इंच बारिश का रिकॉर्ड भोपाल में अगस्त में मानसून जमकर बरसता है। इस महीने राजधानी में औसत साढ़े 35 इंच तक बारिश हो चुकी है, जो साल 2006 में हुई थी। 24 घंटे में सर्वाधिक बारिश करीब 12 इंच 14 अगस्त 2006 को हुई थी। पिछले सालों की बात करें तो 2015 और 2022 में 30 इंच से ज्यादा पानी गिर चुका है।
भोपाल में इस महीने औसत 14 दिन बारिश होती है। इस दौरान 13 दिन तक पानी गिर जाता है। जुलाई जैसे ही सिस्टम एक्टिव होते हैं।
वहीं, सबसे कम बारिश वाले 5 जिलों में सभी इंदौर संभाग के हैं। इंदौर सबसे आखिरी में है। यहां अब तक औसत 16.3 इंच बारिश हुई है। बुरहानपुर में 18.7 इंच, खरगोन में 19.8 इंच, खंडवा में 19 इंच और बड़वानी में 20 इंच से कम पानी गिरा है। बुधवार को भी इन जिलों में तेज बारिश होने के आसार कम ही है। मौसम विभाग ने 28, 29 और 30 अगस्त को प्रदेश के दक्षिणी हिस्से में भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है।
लो प्रेशर एरिया की दिखेगी एक्टिविटी सीनियर मौसम वैज्ञानिक डॉ. दिव्या ई. सुरेंद्रन ने बताया, प्रदेश के ऊपर से एक मानसून ट्रफ गुजर रही है। इस वजह से मंगलवार को कई जिलों में हल्की बारिश का दौर बना रहा। बुधवार को ट्रफ प्रदेश से दूर रहेगी, जिससे तेज बारिश नहीं होगी, लेकिन 28 अगस्त से सिस्टम स्ट्रॉन्ग हो सकता है।
एमपी में अब तक 35.6 इंच बारिश प्रदेश में 16 जून को मानसून ने आमद दी थी। तब से अब तक औसत 35.6 इंच बारिश हो चुकी है। अब तक 29 इंच पानी गिरना था। इस हिसाब से 6.6 इंच पानी ज्यादा गिर चुका है। प्रदेश की सामान्य बारिश औसत 37 इंच है। इस हिसाब से कोटे की 96 प्रतिशत तक बारिश हो चुकी है। 1.4 इंच बारिश होते ही इस बार भी बारिश का कोटा फुल हो जाएगा। पिछली बार 44 इंच से ज्यादा पानी गिरा था।
झमाझम बारिश के एक दौर की उम्मीद
बंगाल की खाड़ी में बना कम दबाव का क्षेत्र गुरुवार तक गहरे कम दबाव के क्षेत्र में परिवर्तित होकर आगे बढ़ेगा। उसके प्रभाव से शुक्रवार से झमाझम बारिश का एक और दौर शुरू होने की उम्मीद है। – अजय शुक्ला, मौसम विशेषज्ञ