
जबलपुर
जब हौसले बुलंद हों तो कोई भी कमी रास्ता नहीं रोक सकती। दृष्टिबाधित खिलाड़ी जानकी बाई और अर्पित काछी ने यह बात अपने जीवन से साबित कर दी है। दोनों ने न सिर्फ राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीते, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का परचम भी लहराया।
सिहोरा की जानकी बनीं भारत की शान
जानकी बाई, जबलपुर के सिहोरा क्षेत्र से ताल्लुक रखती हैं। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से आने वाली जानकी की दुनिया आंखों से नहीं, लेकिन अपने हौसले और संघर्ष से रोशन हुई। 20 साल की उम्र तक वह अगरबत्ती बनाकर परिवार का सहारा बनीं। लेकिन मन में कुछ बड़ा करने की इच्छा थी।
जब वे जूडो प्रशिक्षण के लिए जबलपुर आईं और पहला पदक जीता, तब उनके जीवन की दिशा ही बदल गई। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। पहले राज्य, फिर राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में लगातार मध्यप्रदेश के लिए पदक जीतती रहीं।
उनकी मेहनत और प्रदर्शन ने उन्हें राष्ट्रीय टीम में स्थान दिलाया। उज़्बेकिस्तान, कज़ाख़िस्तान और दो अन्य देशों में आयोजित प्रतियोगिताओं में भाग लेते हुए उन्होंने भारत के लिए चार स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया।
अर्पित काछी ने भी किया चयन को सार्थक
जानकी की तरह ही, दृष्टिबाधित अर्पित काछी भी जूडो की दुनिया में एक चमकता हुआ सितारा हैं। उनके कोच आबिद हुसैन ने उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया। अर्पित ने भी चार बार राष्ट्रीय स्तर पर मध्यप्रदेश की टीम का प्रतिनिधित्व किया और हर बार पदक जीतकर साबित किया कि उनका चयन केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि उनकी योग्यता का प्रमाण है। अर्पित को प्रदेश सरकार ने अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया है। आज वह प्रदेश के श्रेष्ठ दृष्टिबाधित जूडो खिलाड़ियों में गिने जाते हैं।