
नई दिल्ली
पहलगाम हमले का बदला लेने की चर्चाओं के बीच मोदी सरकार ने बहुत बड़ा राजनीतिक फैसला लिया है। एनडीए सरकार ने तय किया है कि वह 2026 में होने वाली जनगणना के साथ ही देश भर में जातीय जनगणना भी करवाएगी। कांग्रेस और खासकर इसके नेता राहुल गांधी 2024 के लोकसभा चुनावों से ही इसकी मांग कर रहे थे और इसे उन्होंने अपना सबसे बड़ा मुद्दा बना लिया था। लेकिन, मोदी सरकार ने अप्रत्याशित रूप से जातीय जनगणना की बात कहकर देश की राजनीति को पूरी तरह से नया मोड़ दे दिया है। इसका सबसे पहला प्रभाव बिहार और फिर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में पड़ सकता है।
देश में पहली बार जातीय जनगणना
देश में पिछला जातीय जनगणना अंग्रेजों के समय 1931 में हुई थी। इस तरह से आजाद भारत में इस तरह की यह पहली कवायद होगी। राजनीतिक रूप से इस फैसले का दूरगामी असर होने की संभावना है। क्योंकि, मोदी सरकर पहले से ही राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिए अपना पीठ थपथपाती रही है और कांग्रेस को ओबीसी विरोधी बताती रही है। ऐसे में यह फैसला खासकर के कांग्रेस और उसके सहयोगियों की रणनीति के सबसे बड़े एजेंडे को अंदर तक हिला देने वाला झटका है।
कांग्रेस ने हवा बनाई, फायदा बीजेपी उठाएगी!
कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने 'जितनी आबादी, उतना हक' जैसा अभियान चला रखा है। 2024 के लोकसभा चुनावों में खासकर के उत्तर प्रदेश में इंडिया ब्लॉक को इसका फायदा भी मिला था। बीजेपी को उसके ओबीसी (OBC) और दलित वोट बैंक का नुकसान भी हुआ। क्योंकि, तब कांग्रेस और सहयोगियों ने यह जोरदार प्रचार किया था कि बीजेपी इसीलिए 400 सीटें मांग रही है, ताकि वह संविधान बदलकर आरक्षण को खत्म कर सके। अब बीजेपी कांग्रेस और उसके सहयोगियों के मुद्दे को लपकने की कोशिश कर सकती है।
राहुल गांधी के हाथ से निकल गया मुद्दा
पिछले एक वर्ष से भी ज्यादा समय से कांग्रेस नेता राहुल गांधी हमेशा जाति जनगणना की बात करते रहे हैं। वह सभी तरह के पदों, हर विभाग में लोगों की जातिगत गिनती पूछते रहे हैं और इसके बहाने सरकार को घेरते रहे हैं। उन्होंने तेलंगाना और कर्नाटक में कांग्रेस की अपनी सरकारों पर भी इस तरह की जनगणना की रिपोर्ट जारी करने का दबाव बनाया। अब बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार देशभर में जातीय जनगणना की बात कर रही है। इसके साथ भाजपा यह भी आरोप लगाती रही है कि शुरू से कांग्रेस ही जातीय जनगणना की विरोधी रही है। अब जिस तरह से सरकार ने परिस्थितियां पलटने की कोशिश की है, उसके बाद राहुल अपने एजेंडे का किस हद तक फायदा उठा सकेंगे, यह बड़ा सवाल है।
बिहार में एनडीए को लाभ मिलेगा!
इस साल अक्टूबर-नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं। बिहार चुनाव में जाति सबसे बड़ा मुद्दा रहता है। यहां जातीय समीकरण ही आखिरकार चुनाव परिणाम तय करते हैं। यूं तो पहले ही बिहार जातिगत सर्वे हो चुके हैं। लेकिन, ओबीसी पीएम नरेंद्र मोदी और ओबीसी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इसके माध्यम से राज्य में एक नया नैरेटिव सेट करने का मौका मिल सकता है, जो कि निश्चित तौर पर 'माय'(मुस्लिम-यादव) समीकरण से आगे देख रही, कांग्रेस की अगुवा लालू यादव की आरजेडी की राजनीति की कमर तोड़ने वाला दांव साबित हो सकता है।
उत्तर प्रदेश है बीजेपी का बड़ा लक्ष्य
अगले साल पश्चिम बंगाल समेत कई और राज्यों में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन, बीजेपी और विपक्ष के लिए सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा 2027 में होने वाला उत्तर प्रदेश चुनाव है। यहां कांग्रेस की अगुवा अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) वाला गोटी सेट कर रही है। लोकसभा चुनावों में इसने इसका फायदा भी उठाया है। लेकिन, जातीय जनगणना का दांव चलकर बीजेपी प्रदेश के ओबीसी और दलित समाज को खुद से दूर करने वाली विपक्ष की रणनीति को कमजोर कर सकती है।