 
                नई दिल्ली 
उच्चतम न्यायालय ने ED यानी प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दो वरिष्ठ वकीलों को जारी समन को रद्द कर दिया तथा जांच एजेंसियों को मुवक्किलों को दी गई कानूनी सलाह के बारे में पूछताछ के लिए वकीलों को बुलाने से रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किए। भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन तथा न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने ईडी द्वारा धन शोधन जांच के सिलसिले में वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को तलब किए जाने के बाद स्वत: संज्ञान मामले में यह फैसला सुनाया।
 
फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति चंद्रन ने कहा कि पीठ ने वकीलों की सुरक्षा के लिए 'नियम में छूट को सुसंगत बनाने' का अनुरोध था और जांच एजेंसियों के अनुचित दबाव से कानूनी पेशे की रक्षा के लिए नए निर्देश जारी किए। पीठ ने कहा कि जांच एजेंसियां किसी भी वकील को मुवक्किलों का विवरण मांगने के लिए समन जारी नहीं करेंगी, जब तक कि यह संबंधित कानून के दायरे में न आता हो।
उसने कहा कि वकीलों के डिजिटल उपकरणों को केवल संबंधित अधिकार क्षेत्र वाली अदालत के समक्ष ही जब्त किया जा सकता है और आपत्तियों के खारिज होने के बाद ही उन्हें उनकी उपस्थिति में तथा पक्षकारों के समक्ष ही खोला जा सकता है।
ईडी द्वारा वकीलों को भेजे गए समन को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह उन आरोपियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है जिन्होंने वकीलों को अपनी पैरवी के लिए चुना था। पीठ ने कहा, 'समन के परिणामस्वरूप उन आरोपियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है, जिन्होंने वकील पर भरोसा जताया था।' पीठ ने ऐसी कार्रवाई को वैधानिक सुरक्षा उपायों का उल्लंघन बताया।
न्यायालय ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 का हवाला देते हुए कहा, 'जांच अधिकारी किसी भी वकील को मुवक्किल का विवरण मांगने के लिए समन जारी नहीं करेंगे, जब तक कि यह धारा 132 के अपवादों के अंतर्गत न आता हो।' उच्चतम न्यायालय ने 12 अगस्त को खुद को देश के सभी नागरिकों का 'संरक्षक' बताया था और मामलों में मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करते समय जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को तलब किए जाने के संबंध में स्वत: संज्ञान मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
ईडी द्वारा दातार और वेणुगोपाल को तलब किए जाने के बाद न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई शुरू की थी। दातार और वेणुगोपाल को समन भेजे जाने की सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन ने तीखी आलोचना की थी और इसे कानूनी पेशे को कमजोर करने के लिए 'परेशान करने वाली प्रवृत्ति' बताया था।
विवाद के बाद ईडी ने 20 जून को आंतरिक निर्देश जारी कर अपने अधिकारियों को निदेशक की पूर्व स्वीकृति और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 के अनुपालन के अलावा धन शोधन के मामलों में वकीलों को तलब करने से रोक दिया था।

 
                     
                     
                    