
भोपाल
उच्च, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री इन्दर सिंह परमार ने कहा है कि भारत की मान्यता में वसुधैव कुटुंबकम् है। विश्व एक परिवार है, विश्व बाजार नहीं है। भारत ने कोविड के संकटकाल में विश्व के कई देशों को वैक्सीन उपलब्ध करवाकर वसुधैव कुटुंबकम् के भारतीय दृष्टिकोण को विश्वमंच पर परिलक्षित किया है। भारत का पुरातन दर्शन व्यापक था, हर क्षेत्र-हर विधा में भारत में समृद्ध ज्ञान था। भारत विश्वमंच पर समृद्ध एवं सक्षम राष्ट्र था, हमारी गौरवशाली एवं समृद्धशाली परंपराएं रही हैं, जिन्हें हमारे पूर्वजों ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के सापेक्ष शोध एवं अध्ययन कर समाज में स्थापित की। मंत्री परमार सोमवार को भोपाल के श्यामला हिल्स स्थित केन्द्रीय व्यावसायिक शिक्षा संस्थान के पंडित सुंदरलाल शर्मा सभागृह में निजी विश्वविद्यालय संघ के तत्वावधान में आयोजित भारतीय ज्ञान परम्परा के विस्तार में निजी विश्वविद्यालयों के योगदान विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी के शुभारम्भ के बाद संबोधित कर रहे थे।
मंत्री परमार ने कहा कि कृतज्ञता का भाव, भारत की समृद्ध संस्कृति एवं परम्परा है। हमारे पूर्वजों ने प्रकृति एवं ऊर्जा स्रोतों के संरक्षण भाव से, समाज में कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए श्रद्धा के रूप में परम्परा स्थापित की। मंत्री परमार ने भारतीय ज्ञान परंपरा के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए विभिन्न क्षेत्रों, विषयों एवं विधाओं में भारतीय पुरातन ज्ञान के तथ्यात्मक उदाहरण प्रस्तुत किए। परमार ने बताया कि नालन्दा विश्वविद्यालय के दौर में शिक्षा, चिकित्सा, तकनीक, इंजीनियरिंग सहित प्रत्येक क्षेत्र में भारत, विश्वमंच पर सिरमौर था। भारत के समृद्ध ज्ञान को ग्रहण करने विश्व भर से लोग आते थे, इसलिए भारत विश्वगुरु कहलाता था। उच्च शिक्षा में प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान परम्परा का समावेश किया गया है। मंत्री परमार ने कहा कि विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों को भारतीय ज्ञान परम्परा की संदर्भ पुस्तकों से समृद्ध करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारतीय गृहणियों की रसोई प्रबंधन, विश्व भर में आदर्श एवं उत्कृष्ट प्रबंधन का उदाहरण है। मंत्री परमार ने प्रधानमंत्री मोदी के स्वदेशी उत्पाद को अपनाने के संकल्प में सहभागिता करने का आह्वान भी किया। परमार ने कहा स्वदेशी आंदोलन से आत्मनिर्भर भारत का संकल्प सिद्ध होगा। परमार ने कहा कि हम सभी की सहभागिता एवं पुरुषार्थ से स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक भारत विश्व में सिरमौर बनेगा।
मंत्री परमार ने निजी विश्वविद्यालयों को शिक्षा में भारतीय ज्ञान परम्परा के व्यापक समावेश, सतत् अध्ययन एवं क्रियान्वयन के लिए अपने संस्थान में भारतीय ज्ञान परम्परा प्रकोष्ठ बनाने को कहा। उन्होंने निजी विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों को अतिरिक्त क्रेडिट देने के साथ ही भारतीय भाषाओं को सिखाने के लिए कार्ययोजना बनाकर क्रियान्वयन करने को कहा। तकनीकी शिक्षा के विद्यार्थियों को जापानी एवं जर्मन भाषा सिखाने के लिए व्यापक कार्ययोजना तैयार करने को कहा।
संगोष्ठी में बीज वक्ता के रूप में यूनाइटेड कान्शसनेस के संयोजक एवं वैश्विक शिक्षाविद् डॉ विक्रांत सिंह तोमर ने भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि भारत ने अपनी जड़ों को खोजना शुरू कर दिया है।
संगोष्ठी का उद्देश्य विद्यार्थियों को भारत की प्राचीन गौरवशाली परंपरा से अवगत कराना था ताकि वे स्वदेशी को अपनाएं और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएं। संगोष्ठी में एलएनसीटी समूह के प्रमुख जयनारायण चौकसे, ओरिएंटल समूह के प्रमुख प्रवीण ठकराल, निजी विश्वविद्यालय संघ के अध्यक्ष इंजी.श्री संजीव अग्रवाल एवं कोषाध्यक्ष हरप्रीत सलूजा सहित विविध शिक्षाविद्, विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधि, प्राध्यापक एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।